Thursday, June 3, 2010

केकरा , केकरा करीं हम सलाम बबुवा

केकरा , केकरा करीं हम सलाम बबुवा ...
लाल रंग लागेला हराम बबुवा ..

लाल बत्ती वाला आवे...कई गो सिपाही लेके..
बाबू लोग ,कोर्ट ,कचहरी के कागजे देखावेला ..
सलामी नाही मरला पर ,बांध के खिच्वावेला..
पेटवा में दाना नाही, कहाँ से दीं उनकर लगान बबुवा ..
केकरा, केकरा करीं हम सलाम बबुवा .....

तोहरो लोगवा ,घरवा में सीधे ढूक जाला,,
अनाज, पानी, इज्जत लूट के ले जाला ,
रोज रैली , रोज धरना, केने ,केने जाईं ..
लाल झंडा ढोवत, ढोवत मन फाट जाला ...
खेती बारी के करी..बोई के अनाज बबुवा ..
केकरा ,केकरा करीं हम सलाम बबुवा ..

तूं आके गोली मार ,सरकारी आदमी बोल के,
उ आवें डंडा मारें , माओ नक्सल बोल के ..
हमरो देह से लाल निकले, गाँव भर लाल होखे ,
फूल , पेड़ के लाल रंग...सड़क चौराहा फैले.
टेसू , लाल देख के कल नाचे के मन करे ..
आज लाल रंग लागेला हराम बबुवा
केकरा ,केकरा करीं हम सलाम बबुवा by ravi pratap shahi for www.jai bhojpuri.com

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लाल झंडे की लाल सलामी करते हैं किसी देश के गुलामी

अश्क आँखों से ही गिरते हैं, पर रोता तो दिल ही है
अमन, सुख और शांति कही किसी के दिल में नहीं है
आज मानवता के कातिल खुद मानव ही रणवीर है

कही कत्ले आम मचा है कही अम्ने आजादी का नारा
नहीं कही प्यार किसी से सब हैं लोग पैसों का मारा
लाल झंडे की लाल सलामी करते हैं किसी देश के गुलामी
नहीं कोई नाता देश से नारा है विकाश की कुर्बानी

नहीं रखने देंगे पैर जमीं पर करते रहेंगे अपने मनमानी
आने नहीं देंगे इधर किसी को विकाश कैसे हो खुदा जानी..
बनते हैं रखवाला जिनके उनके इज्ज़त की होती नीलामी
आज मानवता के कातिल खुद मानव ही रणवीर है... जानी

देश हित नहीं कर्म इनका नहीं हैं किसी के ये रखवाले
इ वो सर्प हैं जो पहले डसते है, जो हैं इनको पालने वाले
नेक नियत, नियति नहीं इनका, क्या बनेगे किसी के रखवाले
ये क्या करेंगे सोंचो जो कुर्बान करतें है, देश के रखवाले




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