अश्क आँखों से ही गिरते हैं, पर रोता तो दिल ही है
अमन, सुख और शांति कही किसी के दिल में नहीं है
आज मानवता के कातिल खुद मानव ही रणवीर है
कही कत्ले आम मचा है कही अम्ने आजादी का नारा
नहीं कही प्यार किसी से सब हैं लोग पैसों का मारा
लाल झंडे की लाल सलामी करते हैं किसी देश के गुलामी
नहीं कोई नाता देश से नारा है विकाश की कुर्बानी
नहीं रखने देंगे पैर जमीं पर करते रहेंगे अपने मनमानी
आने नहीं देंगे इधर किसी को विकाश कैसे हो खुदा जानी..
बनते हैं रखवाला जिनके उनके इज्ज़त की होती नीलामी
आज मानवता के कातिल खुद मानव ही रणवीर है... जानी
देश हित नहीं कर्म इनका नहीं हैं किसी के ये रखवाले
इ वो सर्प हैं जो पहले डसते है, जो हैं इनको पालने वाले
नेक नियत, नियति नहीं इनका, क्या बनेगे किसी के रखवाले
ये क्या करेंगे सोंचो जो कुर्बान करतें है, देश के रखवाले
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Thursday, June 3, 2010
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