Wednesday, January 27, 2010

shayeri 27 jan बहते अश्को की ज़ुबान नही होती,

बहते अश्को की ज़ुबान नही होती,
लफ़्ज़ों मे मोहब्बत बयां नही होती,
मिले जो प्यार तो कदर करना,
किस्मत हर कीसी पर मेहरबां नही होती.
अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना












FOR DETAIL www.uniqueinstitutes.org ,FOR JOB www.uniqueinstitutes.blogspot.com
for free advertisement www.pathakadvertisement.blogspot.com

shayeri 27 jan

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
मेरे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मी हमने,
अभी तो सारा आसमां बाकी है
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती,
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़ कर गिरना, गिरकर चढ़ना, ना अखरता है,
आखिर उसकी मेहनत, बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है ,
जा जा कर खाली हाथ .. लौट आता है
मिलते ना सहज ही मोती पानी में,
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है .. स्वीकार करो ,
क्या कमी रह गई ... देखो ... और सुधार करो
जब तक ना सफल हो ... नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान .. छोड़ न भागो तुम
कुछ किए बिना ही .. जय-जय कार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं







FOR DETAIL www.uniqueinstitutes.org ,FOR JOB www.uniqueinstitutes.blogspot.com
for free advertisement www.pathakadvertisement.blogspot.com

shayer

अपने ही ख्वाबों मे ग़ुम हो जाने का, डर लगता है, हर नयी धूप के खिलते ही, उसके ढल जाने का, डर लगता है, मैने कदमों के निशां से बनाए थे जो रास्ते, अब उन्ही रास्तों के अजनबी हो जाने का, डर लगता है, सिना-ए-बर्फ भी पिघल जाती थी, हमारे जिस जुनूं को देखकर, अब उसी आग मे जल जाने का, डर लगता है, हमारी ज़िंदगी और दर्द का, रिश्ता कुछ यूँ रहा, की अब खुशियों के करीब आने का, डर लगता है, अपने ही ख्वाबो मे ग़ुम हो जाने का, डर लगता है...........
FOR DETAIL www.uniqueinstitutes.org ,FOR JOB www.uniqueinstitutes.blogspot.com
for free advertisement www.pathakadvertisement.blogspot.com

About This Blog

Our Blogger Templates

Blog Archive

  © Blogger template The Professional Template II by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP  

http://draft.blogger.com/config-amazon.g?blogID=8478170187801828689