अपने ही ख्वाबों मे ग़ुम हो जाने का, डर लगता है, हर नयी धूप के खिलते ही, उसके ढल जाने का, डर लगता है, मैने कदमों के निशां से बनाए थे जो रास्ते, अब उन्ही रास्तों के अजनबी हो जाने का, डर लगता है, सिना-ए-बर्फ भी पिघल जाती थी, हमारे जिस जुनूं को देखकर, अब उसी आग मे जल जाने का, डर लगता है, हमारी ज़िंदगी और दर्द का, रिश्ता कुछ यूँ रहा, की अब खुशियों के करीब आने का, डर लगता है, अपने ही ख्वाबो मे ग़ुम हो जाने का, डर लगता है...........
FOR DETAIL www.uniqueinstitutes.org ,FOR JOB www.uniqueinstitutes.blogspot.com
for free advertisement www.pathakadvertisement.blogspot.com
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment