Wednesday, February 24, 2010

माना दोस्ती का रीश्ता खून का नही होता

माना दोस्ती का रीश्ता खून का नही होता
लेकीन खुन के रीश्ते से कम भी नही होता

दोस्ती मे एक बात मुझे समझ नही आती है
दोस्त मे लाख बुराई हो उसमे अच्छाई ही क्यु नजर आती है

दोस्त बीठाता है आपको सर आखो पर
आपकी सारी परेशानी लेता है अपने उपर

आप की गलती सारी दुनीयासे चुपाता है
खुद के अच्छे कामो का शेर्य भी आपही को देता है

दोस्त होता है ऐसे
दीयो के लीये बाती जैसे
अन्धो के लीये लाठी जैसे
प्यासे के लीये पानी जैसे
बच्चे के लीये नानी जैसे
दीयो के लीये बाती जैसे
लेखक के लीये कलम जैसे
बीमार के लीये मलम जैसे


कुभार के लीये माती जैसे
कीसान के लीये खेती जैसे
भ्कत के लीये वरदान जैसे
मरने वाले के लीये जीवनदान जैसे

अन्त मे आप से एक ही बात है कहना
दोस्त को बुरा लगे ऐसा कोई काम ना करना
खुद भी खुश रहना और दोस्तो को भी रखना
चाहे कीतनी भी बडी मुशकील हो दोस्त का साथ ना छोडना

जाते जाते मेरी एक बीन्ती है आप से
अपने प्यारे दोस्त को ये कवीता जरुर सुनाना
मैने तो मेरा फ़र्ज नीभाया
अब आप्को है अपना नीभाना

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